रूस में एक शादी
हाल ही में मैं मॉस्को, रूस में थी।
जिस दिन मैं पार्क गई, वह रविवार था। हल्की बारिश हो रही थी और मौसम ठंडा था, जबकि गर्मी का मौसम था।
मैं एक छाते के नीचे खड़ी होकर उस स्थान की सुंदरता का आनंद ले रही थी... तभी अचानक मेरी नजर एक युवक-युवती पर पड़ी।
स्पष्ट था कि वे अभी-अभी शादी करके आए थे।
लड़की करीब 25 साल की, पतली-दुबली, सुनहरे बालों और चमकती नीली आंखों वाली — बेहद सुंदर।
लड़का भी लगभग उसकी ही उम्र का, बेहद आकर्षक और सैन्य वर्दी में था।
दुल्हन ने सफेद साटन की एक सुंदर पोशाक पहनी थी, जिसे मोतियों और सुंदर लेस से सजाया गया था।
दो छोटी ब्राइड्समेड्स (सहेलियाँ) उसके पीछे खड़ी थीं, जो उसकी ड्रेस का किनारा उठाए हुए थीं ताकि वह गंदी न हो जाए।
एक छोटा लड़का उनके सिर पर छाता पकड़े खड़ा था, ताकि वे भीग न जाएँ।
लड़की के हाथ में फूलों का गुलदस्ता था और दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े थे।
दृश्य अत्यंत मनमोहक था। मैं सोचने लगी — बारिश में वे यहाँ पार्क क्यों आए हैं? शादी के बाद तो कोई उत्सव मनाने किसी और जगह जाता है!
मैंने देखा कि वे दोनों पास के युद्ध स्मारक की ओर बढ़े, फूलों का गुलदस्ता वहाँ अर्पित किया, सिर झुकाकर मौन श्रद्धांजलि दी, और फिर धीरे-धीरे लौट आए।
अब मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई।
उनके साथ एक वृद्ध सज्जन खड़े थे। उन्होंने मेरी साड़ी देखकर पूछा,
“क्या आप भारतीय हैं?”
मैंने कहा, “हाँ, मैं भारत से हूँ।”
हम दोनों में मित्रतापूर्वक बातचीत होने लगी। मैंने मौके का फायदा उठाते हुए प्रश्न पूछे।
“आपको अंग्रेज़ी कैसे आती है?”
“मैं विदेश में काम करता था,” उन्होंने जवाब दिया।
मैंने पूछा,
“ये नवविवाहित जोड़ा शादी के तुरंत बाद बारिश में यहाँ युद्ध स्मारक क्यों आया?”
वह बोले,
“यह रूस की परंपरा है। शादी आमतौर पर शनिवार या रविवार को होती है। मौसम चाहे जैसा भी हो — शादी के रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद — नवविवाहित जोड़े को नजदीकी राष्ट्रीय स्मारक पर जाना ही होता है।”
“हर युवक को यहाँ सेना में कम से कम दो साल सेवा देना अनिवार्य होता है। और शादी के दिन, चाहे वह किसी भी पद पर हो, उसे अपनी सेना की वर्दी में ही शादी करनी होती है।”
मैंने पूछा, “क्यों?”
वे बोले:
“यह कृतज्ञता का प्रतीक है।
हमारे पूर्वजों ने रूस के विभिन्न युद्धों में अपने प्राणों की आहुति दी है — कुछ युद्ध हमने जीते, कुछ हारे — लेकिन उनका बलिदान हमेशा राष्ट्र के लिए था।
नवविवाहित जोड़े को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि वे आज जिस स्वतंत्र और शांतिपूर्ण रूस में जी रहे हैं, वह इन्हीं बलिदानों की वजह से संभव है।
उन्हें उनके आशीर्वाद लेने चाहिए।
राष्ट्र के प्रति प्रेम, शादी की खुशी से भी बड़ा है।
हम बुज़ुर्ग लोग इस परंपरा को जारी रखने पर जोर देते हैं — चाहे वो मॉस्को हो, सेंट पीटर्सबर्ग हो या रूस का कोई और शहर।
शादी के दिन, युद्ध स्मारक पर जाना अनिवार्य है।”
इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं...?
क्या हम भारतीय, अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिन पर अपने शहीदों को याद करते हैं?
हम तो साड़ियों की खरीदारी, गहनों का चुनाव, बड़े-बड़े मेनू और डिस्को पार्टियों की तैयारियों में ही व्यस्त रहते हैं...
मेरी आंखें भर आईं...
काश! हम भारतीय भी रूसियों से यह महान परंपरा और भाव सीख सकें।
काश हम भी उन शहीदों को सम्मान दे सकें जिन्होंने हमारे आज और कल के लिए अपने प्राण त्याग दिए...
~~ सुधा मूर्ति
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